Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Hymn No. 7417 | Date: 19-Jun-1998
चले जा रहे है, मंज़िल की राह पर, ना दूरी का तो कोई अंदाज है।
Calē jā rahē hai, maṁja़ila kī rāha para, nā dūrī kā tō kōī aṁdāja hai।

જીવન માર્ગ, સમજ (Life Approach, Understanding)

Hymn No. 7417 | Date: 19-Jun-1998

चले जा रहे है, मंज़िल की राह पर, ना दूरी का तो कोई अंदाज है।

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calē jā rahē hai, maṁja़ila kī rāha para, nā dūrī kā tō kōī aṁdāja hai।

જીવન માર્ગ, સમજ (Life Approach, Understanding)

1998-06-19 1998-06-19 https://www.kakabhajans.org/Bhajan/default.aspx?id=15406 चले जा रहे है, मंज़िल की राह पर, ना दूरी का तो कोई अंदाज है। चले जा रहे है, मंज़िल की राह पर, ना दूरी का तो कोई अंदाज है।

चले है उम्मीदों के सहारे, पहुँचेंगे कब मंज़िल पर, ना कोई अंदाज है।

मिलेगी राह में मुसीबतें कितनी, उसका ना कोई अंदाज है

राह तो है जो पकड़ी, मिली सही की नही, ना कोई अंदाज है।

मिलेगी राह में रुकावटें कितनी, ना ख्याल है उसका, ना कोई अंदाज है,

कहाँ-कहाँ मिलेगा मुकाम, रुकेंगे कितना, ना कोई अंदाज है।

चले हैं कई भार उठाकर के, होगा खत्म कितना, ना कोई अंदाज है,

चले विश्वास भर के, टिकेगा कहाँ तक, ना कोई अंदाज है।

राह है तो नयी, है साथी कौन साथ में, ना कोई अंदाज हे,

डग डग पर मिल रहा है रास्ता, बतानेवाले का ना है पता, ना कोई अंदाज है।
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चले जा रहे है, मंज़िल की राह पर, ना दूरी का तो कोई अंदाज है।

चले है उम्मीदों के सहारे, पहुँचेंगे कब मंज़िल पर, ना कोई अंदाज है।

मिलेगी राह में मुसीबतें कितनी, उसका ना कोई अंदाज है

राह तो है जो पकड़ी, मिली सही की नही, ना कोई अंदाज है।

मिलेगी राह में रुकावटें कितनी, ना ख्याल है उसका, ना कोई अंदाज है,

कहाँ-कहाँ मिलेगा मुकाम, रुकेंगे कितना, ना कोई अंदाज है।

चले हैं कई भार उठाकर के, होगा खत्म कितना, ना कोई अंदाज है,

चले विश्वास भर के, टिकेगा कहाँ तक, ना कोई अंदाज है।

राह है तो नयी, है साथी कौन साथ में, ना कोई अंदाज हे,

डग डग पर मिल रहा है रास्ता, बतानेवाले का ना है पता, ना कोई अंदाज है।




सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
Lyrics in English Increase Font Decrease Font

calē jā rahē hai, maṁja़ila kī rāha para, nā dūrī kā tō kōī aṁdāja hai।

calē hai ummīdōṁ kē sahārē, pahum̐cēṁgē kaba maṁja़ila para, nā kōī aṁdāja hai।

milēgī rāha mēṁ musībatēṁ kitanī, usakā nā kōī aṁdāja hai

rāha tō hai jō pakaḍa़ī, milī sahī kī nahī, nā kōī aṁdāja hai।

milēgī rāha mēṁ rukāvaṭēṁ kitanī, nā khyāla hai usakā, nā kōī aṁdāja hai,

kahām̐-kahām̐ milēgā mukāma, rukēṁgē kitanā, nā kōī aṁdāja hai।

calē haiṁ kaī bhāra uṭhākara kē, hōgā khatma kitanā, nā kōī aṁdāja hai,

calē viśvāsa bhara kē, ṭikēgā kahām̐ taka, nā kōī aṁdāja hai।

rāha hai tō nayī, hai sāthī kauna sātha mēṁ, nā kōī aṁdāja hē,

ḍaga ḍaga para mila rahā hai rāstā, batānēvālē kā nā hai patā, nā kōī aṁdāja hai।
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Hindi Bhajan no. 7417 by Satguru Devendra Ghia - Kaka
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