Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Hymn No. 6545 | Date: 08-Jan-1997
जीवन में तो जग में सब कुछ होता है, कोई हँसता है, कोई रोता है।
Jīvana mēṁ tō jaga mēṁ saba kucha hōtā hai, kōī ham̐satā hai, kōī rōtā hai।

જીવન માર્ગ, સમજ (Life Approach, Understanding)

Hymn No. 6545 | Date: 08-Jan-1997

जीवन में तो जग में सब कुछ होता है, कोई हँसता है, कोई रोता है।

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jīvana mēṁ tō jaga mēṁ saba kucha hōtā hai, kōī ham̐satā hai, kōī rōtā hai।

જીવન માર્ગ, સમજ (Life Approach, Understanding)

1997-01-08 1997-01-08 https://www.kakabhajans.org/Bhajan/default.aspx?id=16532 जीवन में तो जग में सब कुछ होता है, कोई हँसता है, कोई रोता है। जीवन में तो जग में सब कुछ होता है, कोई हँसता है, कोई रोता है।

कोई आगे पीछे सोच के सब करता है, कोई बिना सोच के करता है।

कोई जीवन में धोखा खाता है, कोई जीवन में सब को धोखा देता है।

कोई तो राजा बनकर रहता है, कोई जीवन में व्यर्थ मजा उठाता है।

कोई जीवन में व्यर्थ चिंता करता है, कोई चिंता से दूर रहता है।

कोई जीवन में सुख की नींद सोता है, कोई दुःख में आहें भरता है।

कोई जीवन में व्यर्थ समय गँवाता है, कोई समय का उपयोग करता है।

कोई किस्मत के आगे झुक जाता है, कोई दृढ़ हो के सामना करता है।

कोई जीवन को जुआ समझ के दाँव लगाता है, कोई पाता है कोई खोता है।

कोई जीवन को आग लगाता है, कोई जीवन की तो आग बुझाता है।
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जीवन में तो जग में सब कुछ होता है, कोई हँसता है, कोई रोता है।

कोई आगे पीछे सोच के सब करता है, कोई बिना सोच के करता है।

कोई जीवन में धोखा खाता है, कोई जीवन में सब को धोखा देता है।

कोई तो राजा बनकर रहता है, कोई जीवन में व्यर्थ मजा उठाता है।

कोई जीवन में व्यर्थ चिंता करता है, कोई चिंता से दूर रहता है।

कोई जीवन में सुख की नींद सोता है, कोई दुःख में आहें भरता है।

कोई जीवन में व्यर्थ समय गँवाता है, कोई समय का उपयोग करता है।

कोई किस्मत के आगे झुक जाता है, कोई दृढ़ हो के सामना करता है।

कोई जीवन को जुआ समझ के दाँव लगाता है, कोई पाता है कोई खोता है।

कोई जीवन को आग लगाता है, कोई जीवन की तो आग बुझाता है।




सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
Lyrics in English Increase Font Decrease Font

jīvana mēṁ tō jaga mēṁ saba kucha hōtā hai, kōī ham̐satā hai, kōī rōtā hai।

kōī āgē pīchē sōca kē saba karatā hai, kōī binā sōca kē karatā hai।

kōī jīvana mēṁ dhōkhā khātā hai, kōī jīvana mēṁ saba kō dhōkhā dētā hai।

kōī tō rājā banakara rahatā hai, kōī jīvana mēṁ vyartha majā uṭhātā hai।

kōī jīvana mēṁ vyartha ciṁtā karatā hai, kōī ciṁtā sē dūra rahatā hai।

kōī jīvana mēṁ sukha kī nīṁda sōtā hai, kōī duḥkha mēṁ āhēṁ bharatā hai।

kōī jīvana mēṁ vyartha samaya gam̐vātā hai, kōī samaya kā upayōga karatā hai।

kōī kismata kē āgē jhuka jātā hai, kōī dr̥ḍha़ hō kē sāmanā karatā hai।

kōī jīvana kō juā samajha kē dām̐va lagātā hai, kōī pātā hai kōī khōtā hai।

kōī jīvana kō āga lagātā hai, kōī jīvana kī tō āga bujhātā hai।
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Hindi Bhajan no. 6545 by Satguru Devendra Ghia - Kaka
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