Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Hymn No. 6901 | Date: 28-Jul-1997
खुदा तूने मुझे इन्सान बनाया, न जाने और तू क्या बनायेगा
Khudā tūnē mujhē insāna banāyā, na jānē aura tū kyā banāyēgā

સ્વયં અનુભૂતિ, આત્મનિરીક્ષણ (Self Realization, Introspection)

Hymn No. 6901 | Date: 28-Jul-1997

खुदा तूने मुझे इन्सान बनाया, न जाने और तू क्या बनायेगा

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khudā tūnē mujhē insāna banāyā, na jānē aura tū kyā banāyēgā

સ્વયં અનુભૂતિ, આત્મનિરીક્ષણ (Self Realization, Introspection)

1997-07-28 1997-07-28 https://www.kakabhajans.org/Bhajan/default.aspx?id=16888 खुदा तूने मुझे इन्सान बनाया, न जाने और तू क्या बनायेगा खुदा तूने मुझे इन्सान बनाया, न जाने और तू क्या बनायेगा,

है जो फ़ासला दरमियान हमारा, उसे कम करेगा या बढ़ायेगा।

सोचता हूँ जब भी मैं, तो लगता है डर मुझे, तू मुझ से क्या करवायेगा।

दिखलाये दुनिया तेरी नजारे, घबराता हूँ, न जाने फिर से मुझे क्या बनायेगा,

चाहता नहीं मैं अपने बीच की जंजीर, इसलिये शायद में घबरता हूँ।

इसलिये यह सोच-सोच के दुःख होता है, कि इन्सान का ना हैवान बना दे।

ना है कोई शिकायत, रहम की मुझ पर सदा इनायत तो करना

रुकेगा ना तू इस ख्याल में जो करना है, वह तू करता रहेगा,

यकीन है दिल में भरा-भरा, एक दिन बात मेरी तो तू सुनेगा

ना डरना है तो तुझ से, जब मेरा जीवन तेरे सामने तो है खुला।
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खुदा तूने मुझे इन्सान बनाया, न जाने और तू क्या बनायेगा,

है जो फ़ासला दरमियान हमारा, उसे कम करेगा या बढ़ायेगा।

सोचता हूँ जब भी मैं, तो लगता है डर मुझे, तू मुझ से क्या करवायेगा।

दिखलाये दुनिया तेरी नजारे, घबराता हूँ, न जाने फिर से मुझे क्या बनायेगा,

चाहता नहीं मैं अपने बीच की जंजीर, इसलिये शायद में घबरता हूँ।

इसलिये यह सोच-सोच के दुःख होता है, कि इन्सान का ना हैवान बना दे।

ना है कोई शिकायत, रहम की मुझ पर सदा इनायत तो करना

रुकेगा ना तू इस ख्याल में जो करना है, वह तू करता रहेगा,

यकीन है दिल में भरा-भरा, एक दिन बात मेरी तो तू सुनेगा

ना डरना है तो तुझ से, जब मेरा जीवन तेरे सामने तो है खुला।




सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
Lyrics in English Increase Font Decrease Font

khudā tūnē mujhē insāna banāyā, na jānē aura tū kyā banāyēgā,

hai jō pha़āsalā daramiyāna hamārā, usē kama karēgā yā baḍha़āyēgā।

sōcatā hūm̐ jaba bhī maiṁ, tō lagatā hai ḍara mujhē, tū mujha sē kyā karavāyēgā।

dikhalāyē duniyā tērī najārē, ghabarātā hūm̐, na jānē phira sē mujhē kyā banāyēgā,

cāhatā nahīṁ maiṁ apanē bīca kī jaṁjīra, isaliyē śāyada mēṁ ghabaratā hūm̐।

isaliyē yaha sōca-sōca kē duḥkha hōtā hai, ki insāna kā nā haivāna banā dē।

nā hai kōī śikāyata, rahama kī mujha para sadā ināyata tō karanā

rukēgā nā tū isa khyāla mēṁ jō karanā hai, vaha tū karatā rahēgā,

yakīna hai dila mēṁ bharā-bharā, ēka dina bāta mērī tō tū sunēgā

nā ḍaranā hai tō tujha sē, jaba mērā jīvana tērē sāmanē tō hai khulā।
English Explanation Increase Font Decrease Font


In this bhajan Shri Devendra Ghia ji also known as Kakaji by his followers is displaying the tribulation of a seeker.

God you made me human, don't know what else will you make.

The distance between us, will it be decrease or increase.

When ever I think, I fear, what will you make do

This world shows me your view, I am nervous, don't know what will you make me again.

I don't want the chains between us, that's why I am nervous.

That's why thinking this I get unhappy, a human is not made into a demon.

There is no complaint, always have mercy on me.

You won't stop taking care, you will keep it doing.

I have belief in my heart, one day you will listen to me.

I don't need to fear you, when my life is open to you.
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Hindi Bhajan no. 6901 by Satguru Devendra Ghia - Kaka
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