Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Hymn No. 7555 | Date: 25-Aug-1998
थी सुख की ख्वाहिश तो दिल में, जीवन दुख की ओर बढ़ रहा था
Thī sukha kī khvāhiśa tō dila mēṁ, jīvana dukha kī ōra baḍha़ rahā thā

જીવન માર્ગ, સમજ (Life Approach, Understanding)

Hymn No. 7555 | Date: 25-Aug-1998

थी सुख की ख्वाहिश तो दिल में, जीवन दुख की ओर बढ़ रहा था

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thī sukha kī khvāhiśa tō dila mēṁ, jīvana dukha kī ōra baḍha़ rahā thā

જીવન માર્ગ, સમજ (Life Approach, Understanding)

1998-08-25 1998-08-25 https://www.kakabhajans.org/Bhajan/default.aspx?id=17542 थी सुख की ख्वाहिश तो दिल में, जीवन दुख की ओर बढ़ रहा था थी सुख की ख्वाहिश तो दिल में, जीवन दुख की ओर बढ़ रहा था

कई उम्मीदों का दिल में भार लेकर, जीवन में बढ़ रहा था।

हर साँस उम्मीदों से थी भरी, साँसे उम्मीदों की ले रहा था

प्रतिकूल पवन की लहरें उठी, दिल व्याकुलता से भर दिया।

न जाने क्या हुआ, क्यों हुआ था मन उसमें तंग था

थी हालत दिल की बुरी ना रो सकता था, ना हँस सकता था

था जीवन में मेरे इतना डूबा, ना जाग सकता था, ना सो सकता था।

ढूँढ़ूँ प्रभु तुझे किन गलियों में, ना मैं गलियों का माहिर था

था उजाले में फिरता, फिर भी अँधेरे में फिर रहा था।
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थी सुख की ख्वाहिश तो दिल में, जीवन दुख की ओर बढ़ रहा था

कई उम्मीदों का दिल में भार लेकर, जीवन में बढ़ रहा था।

हर साँस उम्मीदों से थी भरी, साँसे उम्मीदों की ले रहा था

प्रतिकूल पवन की लहरें उठी, दिल व्याकुलता से भर दिया।

न जाने क्या हुआ, क्यों हुआ था मन उसमें तंग था

थी हालत दिल की बुरी ना रो सकता था, ना हँस सकता था

था जीवन में मेरे इतना डूबा, ना जाग सकता था, ना सो सकता था।

ढूँढ़ूँ प्रभु तुझे किन गलियों में, ना मैं गलियों का माहिर था

था उजाले में फिरता, फिर भी अँधेरे में फिर रहा था।




सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
Lyrics in English Increase Font Decrease Font

thī sukha kī khvāhiśa tō dila mēṁ, jīvana dukha kī ōra baḍha़ rahā thā

kaī ummīdōṁ kā dila mēṁ bhāra lēkara, jīvana mēṁ baḍha़ rahā thā।

hara sām̐sa ummīdōṁ sē thī bharī, sām̐sē ummīdōṁ kī lē rahā thā

pratikūla pavana kī laharēṁ uṭhī, dila vyākulatā sē bhara diyā।

na jānē kyā huā, kyōṁ huā thā mana usamēṁ taṁga thā

thī hālata dila kī burī nā rō sakatā thā, nā ham̐sa sakatā thā

thā jīvana mēṁ mērē itanā ḍūbā, nā jāga sakatā thā, nā sō sakatā thā।

ḍhūm̐ḍha़ūm̐ prabhu tujhē kina galiyōṁ mēṁ, nā maiṁ galiyōṁ kā māhira thā

thā ujālē mēṁ phiratā, phira bhī am̐dhērē mēṁ phira rahā thā।
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Hindi Bhajan no. 7555 by Satguru Devendra Ghia - Kaka
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