Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Hymn No. 7057 | Date: 13-Oct-1997
ढूँढ़ने निकला मैं मुझको, न जाने मैं कहाँ खो गया।
Ḍhūm̐ḍha़nē nikalā maiṁ mujhakō, na jānē maiṁ kahām̐ khō gayā।

જીવન માર્ગ, સમજ (Life Approach, Understanding)



Hymn No. 7057 | Date: 13-Oct-1997

ढूँढ़ने निकला मैं मुझको, न जाने मैं कहाँ खो गया।

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ḍhūm̐ḍha़nē nikalā maiṁ mujhakō, na jānē maiṁ kahām̐ khō gayā।

જીવન માર્ગ, સમજ (Life Approach, Understanding)

1997-10-13 1997-10-13 https://www.kakabhajans.org/Bhajan/default.aspx?id=15046 ढूँढ़ने निकला मैं मुझको, न जाने मैं कहाँ खो गया। ढूँढ़ने निकला मैं मुझको, न जाने मैं कहाँ खो गया।

आवाज ना दे सका मैं मुझको, औरों को ना चला कुछ पता,

था मैं अँधेरे में, था उजालों में, ना मुझे था इसका तो पता।

ना थी वहाँ आवाज किसी की, ना सुन सका आवाज मैं मेरी,

न मैं जान सका मैं कहाँ था, किस बीच गलियो में फिरा।

ना यहाँ जग के नजारे थे, ना पहचान वाला तो कोई मिला,

ना कुछ देखा था, ना कुछ सुना था, ऐसे मुकाम पर मैं पहुचाँ था।

ना तन-बदन की कोई गर्मी थी, ना तन-बदन का कोई दर्द था,

अँधेरे-उजाले में से गुजर रहा था, फिर भी मैं तो वहाँ नहीं था।

आँख खुली मैं वही था, जिस खटिये पर तो मैं लेटा था,

चिंतित चेहरे पर रोशनी आ गई, मुख से तो हर्षोल्लास उठा

कान में हर्ष की आवाज सुनी, वहाँ फिर से वापस आ गया।
https://www.youtube.com/watch?v=v77Di0sZqtI
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ढूँढ़ने निकला मैं मुझको, न जाने मैं कहाँ खो गया।

आवाज ना दे सका मैं मुझको, औरों को ना चला कुछ पता,

था मैं अँधेरे में, था उजालों में, ना मुझे था इसका तो पता।

ना थी वहाँ आवाज किसी की, ना सुन सका आवाज मैं मेरी,

न मैं जान सका मैं कहाँ था, किस बीच गलियो में फिरा।

ना यहाँ जग के नजारे थे, ना पहचान वाला तो कोई मिला,

ना कुछ देखा था, ना कुछ सुना था, ऐसे मुकाम पर मैं पहुचाँ था।

ना तन-बदन की कोई गर्मी थी, ना तन-बदन का कोई दर्द था,

अँधेरे-उजाले में से गुजर रहा था, फिर भी मैं तो वहाँ नहीं था।

आँख खुली मैं वही था, जिस खटिये पर तो मैं लेटा था,

चिंतित चेहरे पर रोशनी आ गई, मुख से तो हर्षोल्लास उठा

कान में हर्ष की आवाज सुनी, वहाँ फिर से वापस आ गया।




सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
Lyrics in English Increase Font Decrease Font

ḍhūm̐ḍha़nē nikalā maiṁ mujhakō, na jānē maiṁ kahām̐ khō gayā।

āvāja nā dē sakā maiṁ mujhakō, aurōṁ kō nā calā kucha patā,

thā maiṁ am̐dhērē mēṁ, thā ujālōṁ mēṁ, nā mujhē thā isakā tō patā।

nā thī vahām̐ āvāja kisī kī, nā suna sakā āvāja maiṁ mērī,

na maiṁ jāna sakā maiṁ kahām̐ thā, kisa bīca galiyō mēṁ phirā।

nā yahām̐ jaga kē najārē thē, nā pahacāna vālā tō kōī milā,

nā kucha dēkhā thā, nā kucha sunā thā, aisē mukāma para maiṁ pahucām̐ thā।

nā tana-badana kī kōī garmī thī, nā tana-badana kā kōī darda thā,

am̐dhērē-ujālē mēṁ sē gujara rahā thā, phira bhī maiṁ tō vahām̐ nahīṁ thā।

ām̐kha khulī maiṁ vahī thā, jisa khaṭiyē para tō maiṁ lēṭā thā,

ciṁtita cēharē para rōśanī ā gaī, mukha sē tō harṣōllāsa uṭhā

kāna mēṁ harṣa kī āvāja sunī, vahām̐ phira sē vāpasa ā gayā।
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Hindi Bhajan no. 7057 by Satguru Devendra Ghia - Kaka

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