Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Hymn No. 7072 | Date: 19-Oct-1997
है कर्म अंदाज प्रभु का तो पूरा, ना वह किसी को कम या ज्यादा देता
Hai karma aṁdāja prabhu kā tō pūrā, nā vaha kisī kō kama yā jyādā dētā

જ્ઞાન, સત્ય, આભાર (Knowledge, Truth, Thanks)

Hymn No. 7072 | Date: 19-Oct-1997

है कर्म अंदाज प्रभु का तो पूरा, ना वह किसी को कम या ज्यादा देता

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hai karma aṁdāja prabhu kā tō pūrā, nā vaha kisī kō kama yā jyādā dētā

જ્ઞાન, સત્ય, આભાર (Knowledge, Truth, Thanks)

1997-10-19 1997-10-19 https://www.kakabhajans.org/Bhajan/default.aspx?id=15061 है कर्म अंदाज प्रभु का तो पूरा, ना वह किसी को कम या ज्यादा देता है कर्म अंदाज प्रभु का तो पूरा, ना वह किसी को कम या ज्यादा देता

इसकी किताब में लिखा हुआ है, साफ हिसाब तो सब का।

देता है वह जो भी देना है, काम सब का नज़र में तो रखता

चाहता है मानव भूल को प्रभु जहाँ में वह भूल कभी नहीं करता

सुख की चादर फैलाई है सबके लिये फिर भी सब दुःख की चादर में सोते,

ना जग में कोई है ऐसा, जिस पर प्रभु नज़र तो नही हैं रखता।

रखा ना खाली, रखता नही खाली जग में, वह सब को तो है देता,

सुख चैन से भरा हुआ है जहाँ, उसका मानव फिर भी दुःख है मोल लेता।

दी है कर्म की लकड़ी मानव के हाथ में, वही लकड़ी से शिक्षा वह है करता

हर हाल में है ध्यान सबका रखता, कर्म अंदाज कभी नही वह चूकता।
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है कर्म अंदाज प्रभु का तो पूरा, ना वह किसी को कम या ज्यादा देता

इसकी किताब में लिखा हुआ है, साफ हिसाब तो सब का।

देता है वह जो भी देना है, काम सब का नज़र में तो रखता

चाहता है मानव भूल को प्रभु जहाँ में वह भूल कभी नहीं करता

सुख की चादर फैलाई है सबके लिये फिर भी सब दुःख की चादर में सोते,

ना जग में कोई है ऐसा, जिस पर प्रभु नज़र तो नही हैं रखता।

रखा ना खाली, रखता नही खाली जग में, वह सब को तो है देता,

सुख चैन से भरा हुआ है जहाँ, उसका मानव फिर भी दुःख है मोल लेता।

दी है कर्म की लकड़ी मानव के हाथ में, वही लकड़ी से शिक्षा वह है करता

हर हाल में है ध्यान सबका रखता, कर्म अंदाज कभी नही वह चूकता।




सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
Lyrics in English Increase Font Decrease Font

hai karma aṁdāja prabhu kā tō pūrā, nā vaha kisī kō kama yā jyādā dētā

isakī kitāba mēṁ likhā huā hai, sāpha hisāba tō saba kā।

dētā hai vaha jō bhī dēnā hai, kāma saba kā naja़ra mēṁ tō rakhatā

cāhatā hai mānava bhūla kō prabhu jahām̐ mēṁ vaha bhūla kabhī nahīṁ karatā

sukha kī cādara phailāī hai sabakē liyē phira bhī saba duḥkha kī cādara mēṁ sōtē,

nā jaga mēṁ kōī hai aisā, jisa para prabhu naja़ra tō nahī haiṁ rakhatā।

rakhā nā khālī, rakhatā nahī khālī jaga mēṁ, vaha saba kō tō hai dētā,

sukha caina sē bharā huā hai jahām̐, usakā mānava phira bhī duḥkha hai mōla lētā।

dī hai karma kī lakaḍa़ī mānava kē hātha mēṁ, vahī lakaḍa़ī sē śikṣā vaha hai karatā

hara hāla mēṁ hai dhyāna sabakā rakhatā, karma aṁdāja kabhī nahī vaha cūkatā।
English Explanation Increase Font Decrease Font


This bhajan is written by our Kakaji Shri Devendra Ghiaji.In this bhajan kakaji is telling us the importance of action deeds.

God is full of actions (deeds), he never gives anyone more or less.

In his book account of everyone is mentioned clearly.

He gives everyone whatever they need, pays attention to each and everyones work.

God likes human forgetting nature but he never forgets anything.

He has spread bed of Happiness for everyone yet people prefer to sleep in sheet of sorrow.

Their is no such person in the world, on whom God does not keep an eye on.

Never left anyone empty, never leaves world empty he gives to everyone.

World is full with happiness and peace ,then too human being keeps measures of unhappiness.

He has given wand of deeds in hands of human, with the help of that wand he gets education.

In every condition he pays attention on everyone, never forgets action of deeds.
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Hindi Bhajan no. 7072 by Satguru Devendra Ghia - Kaka
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