Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Hymn No. 6764 | Date: 08-May-1997
नजाकत भरी है कहानी, जवानी है दीवानी, फिर भी चाहे ना कोई, आके चली जाये जवानी
Najākata bharī hai kahānī, javānī hai dīvānī, phira bhī cāhē nā kōī, ākē calī jāyē javānī

જીવન માર્ગ, સમજ (Life Approach, Understanding)

Hymn No. 6764 | Date: 08-May-1997

नजाकत भरी है कहानी, जवानी है दीवानी, फिर भी चाहे ना कोई, आके चली जाये जवानी

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najākata bharī hai kahānī, javānī hai dīvānī, phira bhī cāhē nā kōī, ākē calī jāyē javānī

જીવન માર્ગ, સમજ (Life Approach, Understanding)

1997-05-08 1997-05-08 https://www.kakabhajans.org/Bhajan/default.aspx?id=16751 नजाकत भरी है कहानी, जवानी है दीवानी, फिर भी चाहे ना कोई, आके चली जाये जवानी नजाकत भरी है कहानी, जवानी है दीवानी, फिर भी चाहे ना कोई, आके चली जाये जवानी

रंग वह नये नये लाये, रुप नये नये दिखलाये, बुढ़ापे तक तो वह पहुँचाए

अलग है तो उसकी मस्ती, ज़िंदगी लगे उसे सस्ती, है उनकी तो एक अलग हस्ति।

रहे तंग सब को तो वह करती, लगे सब को फिर भी प्यारी, है जवानी की ऐसी कहानी।

कभी सुख की कभी दुःख की गलियों में वह फिरती, फिर भी देती है वह नशीली जिंदगानी

रुप दिल में जो समाया, पाना तो उसे चाहा, खुद-खुद को दाँव पर वह तो लगाती।

उमंग दिल में छाये, दिन रात दिल में वह छाये, जीवन में पाना, बन जाये मंजिल उनकी।

ना रास्ता तय तो जब वह करती, हर रास्ते का सफर, बन जाये सफर उनकी।

अंबर के ऊपर या, धरती के अंदर, जो हो मंजिल, ना मंजिल उन्हें ड़रा सकती।

जवानी तो लिखती रहती है उनकी कहानी, ब़ुढापे में तो वह खुद उसे पढ़ती।
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नजाकत भरी है कहानी, जवानी है दीवानी, फिर भी चाहे ना कोई, आके चली जाये जवानी

रंग वह नये नये लाये, रुप नये नये दिखलाये, बुढ़ापे तक तो वह पहुँचाए

अलग है तो उसकी मस्ती, ज़िंदगी लगे उसे सस्ती, है उनकी तो एक अलग हस्ति।

रहे तंग सब को तो वह करती, लगे सब को फिर भी प्यारी, है जवानी की ऐसी कहानी।

कभी सुख की कभी दुःख की गलियों में वह फिरती, फिर भी देती है वह नशीली जिंदगानी

रुप दिल में जो समाया, पाना तो उसे चाहा, खुद-खुद को दाँव पर वह तो लगाती।

उमंग दिल में छाये, दिन रात दिल में वह छाये, जीवन में पाना, बन जाये मंजिल उनकी।

ना रास्ता तय तो जब वह करती, हर रास्ते का सफर, बन जाये सफर उनकी।

अंबर के ऊपर या, धरती के अंदर, जो हो मंजिल, ना मंजिल उन्हें ड़रा सकती।

जवानी तो लिखती रहती है उनकी कहानी, ब़ुढापे में तो वह खुद उसे पढ़ती।




सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
Lyrics in English Increase Font Decrease Font

najākata bharī hai kahānī, javānī hai dīvānī, phira bhī cāhē nā kōī, ākē calī jāyē javānī

raṁga vaha nayē nayē lāyē, rupa nayē nayē dikhalāyē, buḍha़āpē taka tō vaha pahum̐cāē

alaga hai tō usakī mastī, ja़iṁdagī lagē usē sastī, hai unakī tō ēka alaga hasti।

rahē taṁga saba kō tō vaha karatī, lagē saba kō phira bhī pyārī, hai javānī kī aisī kahānī।

kabhī sukha kī kabhī duḥkha kī galiyōṁ mēṁ vaha phiratī, phira bhī dētī hai vaha naśīlī jiṁdagānī

rupa dila mēṁ jō samāyā, pānā tō usē cāhā, khuda-khuda kō dām̐va para vaha tō lagātī।

umaṁga dila mēṁ chāyē, dina rāta dila mēṁ vaha chāyē, jīvana mēṁ pānā, bana jāyē maṁjila unakī।

nā rāstā taya tō jaba vaha karatī, hara rāstē kā saphara, bana jāyē saphara unakī।

aṁbara kē ūpara yā, dharatī kē aṁdara, jō hō maṁjila, nā maṁjila unhēṁ ḍa़rā sakatī।

javānī tō likhatī rahatī hai unakī kahānī, ba़uḍhāpē mēṁ tō vaha khuda usē paḍha़tī।
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Hindi Bhajan no. 6764 by Satguru Devendra Ghia - Kaka
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