Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Hymn No. 6792 | Date: 25-May-1997
दर्द से भरा-भरा तो दिल है, फिर भी होठों पर क्यों खामोशी है?
Darda sē bharā-bharā tō dila hai, phira bhī hōṭhōṁ para kyōṁ khāmōśī hai?

મન, દિલ, ભાવ, વિચાર, યાદ (Mind, Heart, Feelings, Thoughts, Remembrance)

Hymn No. 6792 | Date: 25-May-1997

दर्द से भरा-भरा तो दिल है, फिर भी होठों पर क्यों खामोशी है?

  Audio

darda sē bharā-bharā tō dila hai, phira bhī hōṭhōṁ para kyōṁ khāmōśī hai?

મન, દિલ, ભાવ, વિચાર, યાદ (Mind, Heart, Feelings, Thoughts, Remembrance)

1997-05-25 1997-05-25 https://www.kakabhajans.org/Bhajan/default.aspx?id=16779 दर्द से भरा-भरा तो दिल है, फिर भी होठों पर क्यों खामोशी है? दर्द से भरा-भरा तो दिल है, फिर भी होठों पर क्यों खामोशी है?

अंतर तो कुछ कहना चाहता है, फिर भी होंठ क्यों चुप हैं?

नज़रों ने जो देखा, दिल ने वही चाहा, फिर भी दिल क्यों उदास है?

क्या दिल को लगा, मंजिल उसकी, आसमाँ से ऊँची है?

कब तक यह, सह सकेगा दिल, दिल दर्द से भरा हुआ है

पहुँच जाये जब दिल, नज़रों के पास, नज़रे आँसू बहा देती हैं।

दिल चाहता था, दर्द का राज़, राज़ रहे, राज़ दिल में छुपा रहे

चेहरे ने साथ ना दिया, चेहरे पर छाई हुई उदासी ने राज़ खोल दिया है।

कभी आँसू बन के वह बह गया, कभी आह निकाल के वह कह गया है

आखिर वह राज राज ना रहा, जब नज़रों को, चेहरे ने धोखा दिया।
https://www.youtube.com/watch?v=SyB3_u78GvM
View Original Increase Font Decrease Font


दर्द से भरा-भरा तो दिल है, फिर भी होठों पर क्यों खामोशी है?

अंतर तो कुछ कहना चाहता है, फिर भी होंठ क्यों चुप हैं?

नज़रों ने जो देखा, दिल ने वही चाहा, फिर भी दिल क्यों उदास है?

क्या दिल को लगा, मंजिल उसकी, आसमाँ से ऊँची है?

कब तक यह, सह सकेगा दिल, दिल दर्द से भरा हुआ है

पहुँच जाये जब दिल, नज़रों के पास, नज़रे आँसू बहा देती हैं।

दिल चाहता था, दर्द का राज़, राज़ रहे, राज़ दिल में छुपा रहे

चेहरे ने साथ ना दिया, चेहरे पर छाई हुई उदासी ने राज़ खोल दिया है।

कभी आँसू बन के वह बह गया, कभी आह निकाल के वह कह गया है

आखिर वह राज राज ना रहा, जब नज़रों को, चेहरे ने धोखा दिया।




सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
Lyrics in English Increase Font Decrease Font

darda sē bharā-bharā tō dila hai, phira bhī hōṭhōṁ para kyōṁ khāmōśī hai?

aṁtara tō kucha kahanā cāhatā hai, phira bhī hōṁṭha kyōṁ cupa haiṁ?

naja़rōṁ nē jō dēkhā, dila nē vahī cāhā, phira bhī dila kyōṁ udāsa hai?

kyā dila kō lagā, maṁjila usakī, āsamām̐ sē ūm̐cī hai?

kaba taka yaha, saha sakēgā dila, dila darda sē bharā huā hai

pahum̐ca jāyē jaba dila, naja़rōṁ kē pāsa, naja़rē ām̐sū bahā dētī haiṁ।

dila cāhatā thā, darda kā rāja़, rāja़ rahē, rāja़ dila mēṁ chupā rahē

cēharē nē sātha nā diyā, cēharē para chāī huī udāsī nē rāja़ khōla diyā hai।

kabhī ām̐sū bana kē vaha baha gayā, kabhī āha nikāla kē vaha kaha gayā hai

ākhira vaha rāja rāja nā rahā, jaba naja़rōṁ kō, cēharē nē dhōkhā diyā।
Scan Image

Hindi Bhajan no. 6792 by Satguru Devendra Ghia - Kaka
First...678767886789...Last