Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Hymn No. 6797 | Date: 25-May-1997
क्या जानूँ क्या कमी थी मुझ में? रखा है दूर तूने तो मुझे
Kyā jānūm̐ kyā kamī thī mujha mēṁ? rakhā hai dūra tūnē tō mujhē

સ્વયં અનુભૂતિ, આત્મનિરીક્ષણ (Self Realization, Introspection)



Hymn No. 6797 | Date: 25-May-1997

क्या जानूँ क्या कमी थी मुझ में? रखा है दूर तूने तो मुझे

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kyā jānūm̐ kyā kamī thī mujha mēṁ? rakhā hai dūra tūnē tō mujhē

સ્વયં અનુભૂતિ, આત્મનિરીક્ષણ (Self Realization, Introspection)

1997-05-25 1997-05-25 https://www.kakabhajans.org/Bhajan/default.aspx?id=16784 क्या जानूँ क्या कमी थी मुझ में? रखा है दूर तूने तो मुझे क्या जानूँ क्या कमी थी मुझ में? रखा है दूर तूने तो मुझे

ख़फा नही है अगर जो तू मुझसे, फिर दूर रहा है क्यों तू मुझसे?

कभी दिल भरा-भरा तो रखा, कभी-कभी महसूस करवाये मेरे दिल को

हकीकतों ने खूब खिलाये मुझे, अब हकीकतों पर ऐतबार करूँ मैं कैसे?

हर वक्त तो बात करूँ मैं नई नई, तू तो वही का वही रहता है।

देख रहा हूँ राह तेरे मिलन की, क्यों देर कर रहा है तू मिलने में?

बता दे तू कमी मेरी, कर दूँ मैं उसे पूरी, रखूँ ना दूर मैं तो तुझे,

हर वक्त की तरह, कमी तो मेरी, तुझे मुझ से तो दूर रखती है।

क्या कहूँ, क्या करूँ, जब जीवन में मैं तो कुछ नहीं जानता रे,

जनम जनम तो गये है बीत, जीवन में कमी ना पूरी हुई है।
https://www.youtube.com/watch?v=BYDmGHZ2gVM
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क्या जानूँ क्या कमी थी मुझ में? रखा है दूर तूने तो मुझे

ख़फा नही है अगर जो तू मुझसे, फिर दूर रहा है क्यों तू मुझसे?

कभी दिल भरा-भरा तो रखा, कभी-कभी महसूस करवाये मेरे दिल को

हकीकतों ने खूब खिलाये मुझे, अब हकीकतों पर ऐतबार करूँ मैं कैसे?

हर वक्त तो बात करूँ मैं नई नई, तू तो वही का वही रहता है।

देख रहा हूँ राह तेरे मिलन की, क्यों देर कर रहा है तू मिलने में?

बता दे तू कमी मेरी, कर दूँ मैं उसे पूरी, रखूँ ना दूर मैं तो तुझे,

हर वक्त की तरह, कमी तो मेरी, तुझे मुझ से तो दूर रखती है।

क्या कहूँ, क्या करूँ, जब जीवन में मैं तो कुछ नहीं जानता रे,

जनम जनम तो गये है बीत, जीवन में कमी ना पूरी हुई है।




सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
Lyrics in English Increase Font Decrease Font

kyā jānūm̐ kyā kamī thī mujha mēṁ? rakhā hai dūra tūnē tō mujhē

kha़phā nahī hai agara jō tū mujhasē, phira dūra rahā hai kyōṁ tū mujhasē?

kabhī dila bharā-bharā tō rakhā, kabhī-kabhī mahasūsa karavāyē mērē dila kō

hakīkatōṁ nē khūba khilāyē mujhē, aba hakīkatōṁ para aitabāra karūm̐ maiṁ kaisē?

hara vakta tō bāta karūm̐ maiṁ naī naī, tū tō vahī kā vahī rahatā hai।

dēkha rahā hūm̐ rāha tērē milana kī, kyōṁ dēra kara rahā hai tū milanē mēṁ?

batā dē tū kamī mērī, kara dūm̐ maiṁ usē pūrī, rakhūm̐ nā dūra maiṁ tō tujhē,

hara vakta kī taraha, kamī tō mērī, tujhē mujha sē tō dūra rakhatī hai।

kyā kahūm̐, kyā karūm̐, jaba jīvana mēṁ maiṁ tō kucha nahīṁ jānatā rē,

janama janama tō gayē hai bīta, jīvana mēṁ kamī nā pūrī huī hai।
English Explanation Increase Font Decrease Font


In this Bhajan our beloved Kakaji also known as shri Devendra Ghia ji is portraying a lamenting seeker who is longing for

Togetherness with god

I don't know what was lacking in me? You have kept me away.

If you are not angry with me, then why have you stayed away from me.

Sometimes I kept my heart filled, sometimes I made my heart feel.

Reality feed me a lot, but How do I believe in reality?

Every time I talk some things new, but you always remain there at same place.

I am waiting to meet you, why are you delaying in meeting me?

Tell me my shortcomings, I will overcome them, I will not keep you far from me.

Like every time shortcomings of mine, keep me far from you

What do I say, what do I do, when I do not know anything in life.

This life has been passed, shortcomings in this life has not been fulfilled.
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Hindi Bhajan no. 6797 by Satguru Devendra Ghia - Kaka

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