Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Hymn No. 6867 | Date: 10-Jul-1997
हजरत आहें क्यों भरते हो, आहें क्यों छिपाते हो?
Hajarata āhēṁ kyōṁ bharatē hō, āhēṁ kyōṁ chipātē hō?

જીવન માર્ગ, સમજ (Life Approach, Understanding)

Hymn No. 6867 | Date: 10-Jul-1997

हजरत आहें क्यों भरते हो, आहें क्यों छिपाते हो?

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hajarata āhēṁ kyōṁ bharatē hō, āhēṁ kyōṁ chipātē hō?

જીવન માર્ગ, સમજ (Life Approach, Understanding)

1997-07-10 1997-07-10 https://www.kakabhajans.org/Bhajan/default.aspx?id=16854 हजरत आहें क्यों भरते हो, आहें क्यों छिपाते हो? हजरत आहें क्यों भरते हो, आहें क्यों छिपाते हो?

ले लिया है दर्द ने कब्जा तो, दिलों-दिमाग का

हजरत अब क्यों इस में घबराये लगते हो।

रख दिया है, नयी मंजिल पर तो जब कदम

अब घबराये पीछे, मुड़-मुड के क्यों देखते हो?

लूट गया है वह चैन तुम्हारा, खाना पीना भूल गये हो,

अब यादों ही यादों में, आहें क्यों भरते हो?

जब यह दर्द आपके वश में नहीं, उसके पीछे क्यों दौड़े रहे हो?

मंजिल ही है इस दर्द का मुकाम, बीच-बीच में क्यों रुकते हो?

दीवानों की कमी नही इस जग में, गिनती उनकी क्यों बढ़ाते हो?
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हजरत आहें क्यों भरते हो, आहें क्यों छिपाते हो?

ले लिया है दर्द ने कब्जा तो, दिलों-दिमाग का

हजरत अब क्यों इस में घबराये लगते हो।

रख दिया है, नयी मंजिल पर तो जब कदम

अब घबराये पीछे, मुड़-मुड के क्यों देखते हो?

लूट गया है वह चैन तुम्हारा, खाना पीना भूल गये हो,

अब यादों ही यादों में, आहें क्यों भरते हो?

जब यह दर्द आपके वश में नहीं, उसके पीछे क्यों दौड़े रहे हो?

मंजिल ही है इस दर्द का मुकाम, बीच-बीच में क्यों रुकते हो?

दीवानों की कमी नही इस जग में, गिनती उनकी क्यों बढ़ाते हो?




सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
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hajarata āhēṁ kyōṁ bharatē hō, āhēṁ kyōṁ chipātē hō?

lē liyā hai darda nē kabjā tō, dilōṁ-dimāga kā

hajarata aba kyōṁ isa mēṁ ghabarāyē lagatē hō।

rakha diyā hai, nayī maṁjila para tō jaba kadama

aba ghabarāyē pīchē, muḍa़-muḍa kē kyōṁ dēkhatē hō?

lūṭa gayā hai vaha caina tumhārā, khānā pīnā bhūla gayē hō,

aba yādōṁ hī yādōṁ mēṁ, āhēṁ kyōṁ bharatē hō?

jaba yaha darda āpakē vaśa mēṁ nahīṁ, usakē pīchē kyōṁ dauḍa़ē rahē hō?

maṁjila hī hai isa darda kā mukāma, bīca-bīca mēṁ kyōṁ rukatē hō?

dīvānōṁ kī kamī nahī isa jaga mēṁ, ginatī unakī kyōṁ baḍha़ātē hō?
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Hindi Bhajan no. 6867 by Satguru Devendra Ghia - Kaka
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