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ख्वाबों से सजाई मैंने मेरे ख्वाबों की दुनिया
खो गया मैं इसमें इतना, ना मुझे मेरा होश रहा।
पल पल तो बीती, ना होश, मदहोश मैं बना
जो भी दृश्य था मैं तो इससे तो जुड़ा हुआ।
रंगीन थी इस में रातें, रंगीन तो थे इसमें ख्वाब
जो जीवन में मुझे ना मिला, वह ख्वाबों में पा रहा था।
ख्वाबों में थोड़ी सच्चाई थी, था थ़ेडा रंगीन विचार
भुला रही थी वह बाहर की तो सब दुनिया
चाहता ना था तो मैं, इसमें से बाहर तो आना
जानते हुए, ना वह जीवन है, फिर भी ना छोड़ सका।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)