Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Hymn No. 6776 | Date: 13-May-1997
ना जीवन में गम तो कुछ कम है, फिर भी जिये जा रहा हूँ
Nā jīvana mēṁ gama tō kucha kama hai, phira bhī jiyē jā rahā hūm̐

સ્વયં અનુભૂતિ, આત્મનિરીક્ષણ (Self Realization, Introspection)

Hymn No. 6776 | Date: 13-May-1997

ना जीवन में गम तो कुछ कम है, फिर भी जिये जा रहा हूँ

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nā jīvana mēṁ gama tō kucha kama hai, phira bhī jiyē jā rahā hūm̐

સ્વયં અનુભૂતિ, આત્મનિરીક્ષણ (Self Realization, Introspection)

1997-05-13 1997-05-13 https://www.kakabhajans.org/Bhajan/default.aspx?id=16763 ना जीवन में गम तो कुछ कम है, फिर भी जिये जा रहा हूँ ना जीवन में गम तो कुछ कम है, फिर भी जिये जा रहा हूँ,

इन्सानियत की रोशनी ना दिल में जल रही है, फिर भी इन्सान कहलाता हूँ।

काबू नही है मन पर, दिल पर फिर भी खुद को योगी समझे जा रहा हूँ,

दुःख दर्द में डूब रहा हूँ, फिर भी उसके खिलाफ आवाज नही उठाता हूँ।

जीवन की दौड़ में पीछे रह गया हूँ, फिर भी खुद को गुनहगार ना समझ रहा हूँ,

करूँ ना करूँ जीवन में निर्णय ना ले सका हूँ, जीवन में मौका खो रहा हूँ।

मिलना चाहता हूँ मैं तुझ से प्रभु, मैं तुम्हें दूर रखते जा रहा हूँ।

प्रेम और प्रेम की बातें किये जा रहा हूँ, फिर भी प्रेम क्या है ना समझ रहा हूँ।

गम से नाता बढ़ रहा है, गम कुछ कम नही, फिर भी बढ़ाये तो जा रहा हूँ।

जीवन में गमों के घूँट पिये जा रहा हूँ, जग मे मैं जीवन जीये जा रहा हूँ।
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ना जीवन में गम तो कुछ कम है, फिर भी जिये जा रहा हूँ,

इन्सानियत की रोशनी ना दिल में जल रही है, फिर भी इन्सान कहलाता हूँ।

काबू नही है मन पर, दिल पर फिर भी खुद को योगी समझे जा रहा हूँ,

दुःख दर्द में डूब रहा हूँ, फिर भी उसके खिलाफ आवाज नही उठाता हूँ।

जीवन की दौड़ में पीछे रह गया हूँ, फिर भी खुद को गुनहगार ना समझ रहा हूँ,

करूँ ना करूँ जीवन में निर्णय ना ले सका हूँ, जीवन में मौका खो रहा हूँ।

मिलना चाहता हूँ मैं तुझ से प्रभु, मैं तुम्हें दूर रखते जा रहा हूँ।

प्रेम और प्रेम की बातें किये जा रहा हूँ, फिर भी प्रेम क्या है ना समझ रहा हूँ।

गम से नाता बढ़ रहा है, गम कुछ कम नही, फिर भी बढ़ाये तो जा रहा हूँ।

जीवन में गमों के घूँट पिये जा रहा हूँ, जग मे मैं जीवन जीये जा रहा हूँ।




सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
Lyrics in English Increase Font Decrease Font

nā jīvana mēṁ gama tō kucha kama hai, phira bhī jiyē jā rahā hūm̐,

insāniyata kī rōśanī nā dila mēṁ jala rahī hai, phira bhī insāna kahalātā hūm̐।

kābū nahī hai mana para, dila para phira bhī khuda kō yōgī samajhē jā rahā hūm̐,

duḥkha darda mēṁ ḍūba rahā hūm̐, phira bhī usakē khilāpha āvāja nahī uṭhātā hūm̐।

jīvana kī dauḍa़ mēṁ pīchē raha gayā hūm̐, phira bhī khuda kō gunahagāra nā samajha rahā hūm̐,

karūm̐ nā karūm̐ jīvana mēṁ nirṇaya nā lē sakā hūm̐, jīvana mēṁ maukā khō rahā hūm̐।

milanā cāhatā hūm̐ maiṁ tujha sē prabhu, maiṁ tumhēṁ dūra rakhatē jā rahā hūm̐।

prēma aura prēma kī bātēṁ kiyē jā rahā hūm̐, phira bhī prēma kyā hai nā samajha rahā hūm̐।

gama sē nātā baḍha़ rahā hai, gama kucha kama nahī, phira bhī baḍha़āyē tō jā rahā hūm̐।

jīvana mēṁ gamōṁ kē ghūm̐ṭa piyē jā rahā hūm̐, jaga mē maiṁ jīvana jīyē jā rahā hūm̐।
English Explanation Increase Font Decrease Font


In this bhajan our beloved Kakaji formally known as Shri Devendra Ghia ji is talking how does a earnest seeker goes on living the life facing all its sorrow, pain and own shortcomings in journey towards god.

Neither there is less of sorrow in life, then also I am going on living.

There is no light of humanity within this heart, then also I am called human.

Neither I am able to control my mind nor my heart then also I think of myself as yogi.

I am drowning in sorrow and pain, then also I am not raising voice against it.

In this race of life I am left behind, then also I do not think of myself as criminal.

Whether I do or not in this life I have not been able to take decision, I am loosing opportunity in life.

I want to meet you oh lord, I have been keeping you away.

I am talking of love and topics of love, yet I do not understand what love is.

Relation with sorrow is increasing, there is no less of sorrow, yet I am going on increasing.

I am taking sip of sorrow in this life, In this world I am going on living.
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Hindi Bhajan no. 6776 by Satguru Devendra Ghia - Kaka
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