Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Hymn No. 8663 | Date: 07-Jul-2000
आया जग में जब तू बंदे, जंग-ए-ऐलान हो गई
Āyā jaga mēṁ jaba tū baṁdē, jaṁga-ē-ailāna hō gaī

જીવન માર્ગ, સમજ (Life Approach, Understanding)

Hymn No. 8663 | Date: 07-Jul-2000

आया जग में जब तू बंदे, जंग-ए-ऐलान हो गई

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āyā jaga mēṁ jaba tū baṁdē, jaṁga-ē-ailāna hō gaī

જીવન માર્ગ, સમજ (Life Approach, Understanding)

2000-07-07 2000-07-07 https://www.kakabhajans.org/Bhajan/default.aspx?id=18150 आया जग में जब तू बंदे, जंग-ए-ऐलान हो गई आया जग में जब तू बंदे, जंग-ए-ऐलान हो गई,

हर श्वास से जंग खेलना होगा, लो जंग शुरू हो गई।

आया जग में जब तू बंदे, ना कोई पहचान थी,

हर अपरिचित चेहरे में, ढूँढ़ना पड़ा परिचित चेहरा।

कौन अपना कौन पराया, ना सच्ची पहचान मिली,

अकेलापन ना जी को भाया, पहचान बढ़ती गई।

लड़ना पडा गैरों से, जंग अंदर तो चलती रही।

कभी हार मिली, कभी जीत, जंग तो चलती रही।

कभी जोश रहा, कभी जोश टूटा, ना जंग पर असर हुआ,

हर हाल में मैदान निष्कंटक करना था, यह उम्मीद थी।
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आया जग में जब तू बंदे, जंग-ए-ऐलान हो गई,

हर श्वास से जंग खेलना होगा, लो जंग शुरू हो गई।

आया जग में जब तू बंदे, ना कोई पहचान थी,

हर अपरिचित चेहरे में, ढूँढ़ना पड़ा परिचित चेहरा।

कौन अपना कौन पराया, ना सच्ची पहचान मिली,

अकेलापन ना जी को भाया, पहचान बढ़ती गई।

लड़ना पडा गैरों से, जंग अंदर तो चलती रही।

कभी हार मिली, कभी जीत, जंग तो चलती रही।

कभी जोश रहा, कभी जोश टूटा, ना जंग पर असर हुआ,

हर हाल में मैदान निष्कंटक करना था, यह उम्मीद थी।




सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
Lyrics in English Increase Font Decrease Font

āyā jaga mēṁ jaba tū baṁdē, jaṁga-ē-ailāna hō gaī,

hara śvāsa sē jaṁga khēlanā hōgā, lō jaṁga śurū hō gaī।

āyā jaga mēṁ jaba tū baṁdē, nā kōī pahacāna thī,

hara aparicita cēharē mēṁ, ḍhūm̐ḍha़nā paḍa़ā paricita cēharā।

kauna apanā kauna parāyā, nā saccī pahacāna milī,

akēlāpana nā jī kō bhāyā, pahacāna baḍha़tī gaī।

laḍa़nā paḍā gairōṁ sē, jaṁga aṁdara tō calatī rahī।

kabhī hāra milī, kabhī jīta, jaṁga tō calatī rahī।

kabhī jōśa rahā, kabhī jōśa ṭūṭā, nā jaṁga para asara huā,

hara hāla mēṁ maidāna niṣkaṁṭaka karanā thā, yaha ummīda thī।
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Hindi Bhajan no. 8663 by Satguru Devendra Ghia - Kaka
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