Hymn No. 3385 | Date: 08-Sep-1991
लकीरें पड़ी हैं जो हाथ में, करे राज जीवन भर वह मुझ पर
lakīrēṁ paḍa़ī haiṁ jō hātha mēṁ, karē rāja jīvana bhara vaha mujha para
શરણાગતિ (Surrender)
1991-09-08
1991-09-08
1991-09-08
https://www.kakabhajans.org/bhajan/default.aspx?id=14374
लकीरें पड़ी हैं जो हाथ में, करे राज जीवन भर वह मुझ पर
लकीरें पड़ी हैं जो हाथ में, करे राज जीवन भर वह मुझ पर,
वह बात मुझे मंजूर नही, वह बात मुझे मंजूर नही।
है कोमल दिल तो पास में, रहे सहता हर दम वह सितम, वह बात मुझे ...
मिला है दिमाग तो जीवन में, चढ़ता रहे जंग तो उस पर, वह बात मुझे ...
मिली जिव्हा जीवन में, रहे करती वह फिजूल बात, वह बात मुझे ...
मिला हाथ तो जीवन में, देते देते वह जो थक जाये, वह बात मुझे ...
करता हूँ विचार तो सदा, रहे किसीका उसमें अकल्याण, वह बात मुझे ...
लेता रहा हूँ जग में तो श्वास, उपयोग बिना वह छूट जाय, वह बात मुझे ...
फिरती रहे नज़र जग में सदा, गलत देखने में मग्न हो जाये, वह बात मुझे ...
दर्द और स्वार्थ में आँसू तो मेरे बह जाएँ, वह बात मुझे ...
संजोग जीवन में मुझे जो मजबूर बनाते जाएँ, वह बात मुझे ...
https://www.youtube.com/watch?v=TdrkxPuqA1w
Satguru Shri Devendra Ghia (Kaka)
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लकीरें पड़ी हैं जो हाथ में, करे राज जीवन भर वह मुझ पर,
वह बात मुझे मंजूर नही, वह बात मुझे मंजूर नही।
है कोमल दिल तो पास में, रहे सहता हर दम वह सितम, वह बात मुझे ...
मिला है दिमाग तो जीवन में, चढ़ता रहे जंग तो उस पर, वह बात मुझे ...
मिली जिव्हा जीवन में, रहे करती वह फिजूल बात, वह बात मुझे ...
मिला हाथ तो जीवन में, देते देते वह जो थक जाये, वह बात मुझे ...
करता हूँ विचार तो सदा, रहे किसीका उसमें अकल्याण, वह बात मुझे ...
लेता रहा हूँ जग में तो श्वास, उपयोग बिना वह छूट जाय, वह बात मुझे ...
फिरती रहे नज़र जग में सदा, गलत देखने में मग्न हो जाये, वह बात मुझे ...
दर्द और स्वार्थ में आँसू तो मेरे बह जाएँ, वह बात मुझे ...
संजोग जीवन में मुझे जो मजबूर बनाते जाएँ, वह बात मुझे ...
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
lakīrēṁ paḍa़ī haiṁ jō hātha mēṁ, karē rāja jīvana bhara vaha mujha para,
vaha bāta mujhē maṁjūra nahī, vaha bāta mujhē maṁjūra nahī।
hai kōmala dila tō pāsa mēṁ, rahē sahatā hara dama vaha sitama, vaha bāta mujhē ...
milā hai dimāga tō jīvana mēṁ, caḍha़tā rahē jaṁga tō usa para, vaha bāta mujhē ...
milī jivhā jīvana mēṁ, rahē karatī vaha phijūla bāta, vaha bāta mujhē ...
milā hātha tō jīvana mēṁ, dētē dētē vaha jō thaka jāyē, vaha bāta mujhē ...
karatā hūm̐ vicāra tō sadā, rahē kisīkā usamēṁ akalyāṇa, vaha bāta mujhē ...
lētā rahā hūm̐ jaga mēṁ tō śvāsa, upayōga binā vaha chūṭa jāya, vaha bāta mujhē ...
phiratī rahē naja़ra jaga mēṁ sadā, galata dēkhanē mēṁ magna hō jāyē, vaha bāta mujhē ...
darda aura svārtha mēṁ ām̐sū tō mērē baha jāēm̐, vaha bāta mujhē ...
saṁjōga jīvana mēṁ mujhē jō majabūra banātē jāēm̐, vaha bāta mujhē ...
English Explanation |
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In this Hindi bhajan Devendra Ghia also fondly known as kakaji is expounding on the vagaries of life
The lines of palms ruling over my life.
I do not accept it I do not accept it
Tender heart of mine keeps on tolerating all the tyrannies
I do not accept it I do not accept it
The intellect getting rusty due to no use
I do not accept it I do not accept it
The tongue of mine keeps uttering unnecessary
I do not accept it I do not accept it
The hands of mine if get tired of giving, giving
I do not accept it I do not accept it
Am always in thinking if these thought are about unhappiness of others
I do not accept it I do not accept it
I keep on breathing these breaths not being useful
I do not accept it I do not accept it
Eyes keep on wandering if they find merry in wrong
I do not accept it I do not accept it
Shedding tears of pain and selfishness
I do not accept it I do not accept it
Destiny making me helpless in life
I do not accept it I do not accept it
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