Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Hymn No. 9117 | Date: 24-Jan-2002
दिन रात बीत रहे हैं, गिन-गिन के तारे
Dina rāta bīta rahē haiṁ, gina-gina kē tārē
Hymn No. 9117 | Date: 24-Jan-2002

दिन रात बीत रहे हैं, गिन-गिन के तारे

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dina rāta bīta rahē haiṁ, gina-gina kē tārē

2002-01-24 2002-01-24 https://www.kakabhajans.org/bhajan/default.aspx?id=18604 दिन रात बीत रहे हैं, गिन-गिन के तारे दिन रात बीत रहे हैं, गिन-गिन के तारे

निराशाओं के बादलों में, छिप गई हैं आशाओं की किरणें।

प्यार की ज्योत जली दिल में, राह जीवन में वह तो दिखाये।

सुख की आस दुःख की निराशाओं में बदलती तो जाये।

अँधेरी राहों में चल रहे हैं, कोई अनजान आकर रास्ता दिखाये,

नींद से भी मिले ना ताजगी, थकावट की नींद तो आये।

चारों ओर है अँधेरा ही अँधेरा, मंजिल ना दिखाये,

मोह लालच की पहनी है जंजीर, जीवन में ना तोड़ पाये।

उमंगों से की शुरूआत, मिला दीवानापन तो बदले में,

रूकावटों को करना है पार, समझ में ना आवे तो कैसे?
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दिन रात बीत रहे हैं, गिन-गिन के तारे

निराशाओं के बादलों में, छिप गई हैं आशाओं की किरणें।

प्यार की ज्योत जली दिल में, राह जीवन में वह तो दिखाये।

सुख की आस दुःख की निराशाओं में बदलती तो जाये।

अँधेरी राहों में चल रहे हैं, कोई अनजान आकर रास्ता दिखाये,

नींद से भी मिले ना ताजगी, थकावट की नींद तो आये।

चारों ओर है अँधेरा ही अँधेरा, मंजिल ना दिखाये,

मोह लालच की पहनी है जंजीर, जीवन में ना तोड़ पाये।

उमंगों से की शुरूआत, मिला दीवानापन तो बदले में,

रूकावटों को करना है पार, समझ में ना आवे तो कैसे?




सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
Lyrics in English Increase Font Decrease Font

dina rāta bīta rahē haiṁ, gina-gina kē tārē

nirāśāōṁ kē bādalōṁ mēṁ, chipa gaī haiṁ āśāōṁ kī kiraṇēṁ।

pyāra kī jyōta jalī dila mēṁ, rāha jīvana mēṁ vaha tō dikhāyē।

sukha kī āsa duḥkha kī nirāśāōṁ mēṁ badalatī tō jāyē।

am̐dhērī rāhōṁ mēṁ cala rahē haiṁ, kōī anajāna ākara rāstā dikhāyē,

nīṁda sē bhī milē nā tājagī, thakāvaṭa kī nīṁda tō āyē।

cārōṁ ōra hai am̐dhērā hī am̐dhērā, maṁjila nā dikhāyē,

mōha lālaca kī pahanī hai jaṁjīra, jīvana mēṁ nā tōḍa़ pāyē।

umaṁgōṁ sē kī śurūāta, milā dīvānāpana tō badalē mēṁ,

rūkāvaṭōṁ kō karanā hai pāra, samajha mēṁ nā āvē tō kaisē?
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Hindi Bhajan no. 9117 by Satguru Devendra Ghia - Kaka
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