Hymn No. 6138 | Date: 31-Jan-1996
करो ना जीवन में किसी की शिकायत, सीखो ना करना जग में शिकायत ही शिकायत
karō nā jīvana mēṁ kisī kī śikāyata, sīkhō nā karanā jaga mēṁ śikāyata hī śikāyata
જ્ઞાન, સત્ય, આભાર (Knowledge, Truth, Thanks)
1996-01-31
1996-01-31
1996-01-31
https://www.kakabhajans.org/Bhajan/default.aspx?id=12127
करो ना जीवन में किसी की शिकायत, सीखो ना करना जग में शिकायत ही शिकायत
करो ना जीवन में किसी की शिकायत, सीखो ना करना जग में शिकायत ही शिकायत,
प्रभु ने ना की, जग में किसी की शिकायत, ना किसी से शिकायत।
है पैगाम प्रभु का, करो जग में सबसे मोहब्बत, करो ना किसी की शिकायत,
भूल जाओगे, लूटना आनंद जीवन का, करते रहोगे शिकायत ही शिकायत।
होगी किसी के लिये दिल में अदावत, करते रहोगे शिकायत ही शिकायत,
प्रभु के दरबार में चलेगी ना कोई बनावट, रखोगे दिल में अगर बनावट।
शिकायत ही शिकायत रटता रहेगा तू, करनी पड़ेगी इसकी बगावत,
बगावत ना करेगा तू, रखना ध्यान में, शिकायत ही बन ना जाये रुकावट ही रुकावट।
खुले आये खुले दरबार में, प्रभु ने की है प्यार की इनायत-इनायत,
शिकायत शिकायत करने में भूल जायेगा, तू प्रभु की करामात करामात।
Satguru Shri Devendra Ghia (Kaka)
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करो ना जीवन में किसी की शिकायत, सीखो ना करना जग में शिकायत ही शिकायत,
प्रभु ने ना की, जग में किसी की शिकायत, ना किसी से शिकायत।
है पैगाम प्रभु का, करो जग में सबसे मोहब्बत, करो ना किसी की शिकायत,
भूल जाओगे, लूटना आनंद जीवन का, करते रहोगे शिकायत ही शिकायत।
होगी किसी के लिये दिल में अदावत, करते रहोगे शिकायत ही शिकायत,
प्रभु के दरबार में चलेगी ना कोई बनावट, रखोगे दिल में अगर बनावट।
शिकायत ही शिकायत रटता रहेगा तू, करनी पड़ेगी इसकी बगावत,
बगावत ना करेगा तू, रखना ध्यान में, शिकायत ही बन ना जाये रुकावट ही रुकावट।
खुले आये खुले दरबार में, प्रभु ने की है प्यार की इनायत-इनायत,
शिकायत शिकायत करने में भूल जायेगा, तू प्रभु की करामात करामात।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
karō nā jīvana mēṁ kisī kī śikāyata, sīkhō nā karanā jaga mēṁ śikāyata hī śikāyata,
prabhu nē nā kī, jaga mēṁ kisī kī śikāyata, nā kisī sē śikāyata।
hai paigāma prabhu kā, karō jaga mēṁ sabasē mōhabbata, karō nā kisī kī śikāyata,
bhūla jāōgē, lūṭanā ānaṁda jīvana kā, karatē rahōgē śikāyata hī śikāyata।
hōgī kisī kē liyē dila mēṁ adāvata, karatē rahōgē śikāyata hī śikāyata,
prabhu kē darabāra mēṁ calēgī nā kōī banāvaṭa, rakhōgē dila mēṁ agara banāvaṭa।
śikāyata hī śikāyata raṭatā rahēgā tū, karanī paḍa़ēgī isakī bagāvata,
bagāvata nā karēgā tū, rakhanā dhyāna mēṁ, śikāyata hī bana nā jāyē rukāvaṭa hī rukāvaṭa।
khulē āyē khulē darabāra mēṁ, prabhu nē kī hai pyāra kī ināyata-ināyata,
śikāyata śikāyata karanē mēṁ bhūla jāyēgā, tū prabhu kī karāmāta karāmāta।
English Explanation |
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In this bhajan Shri Devendra Ghiaji is telling us if you want to enjoy happiness you need to stop complaining .
In life Don't complain about anyone, learn not to complain and complain about anyone.
In this world God has not complained about anyone ,not have complained about anyone.
The message preached by god, is to love everyone in this world dont complain about anyone.
You will forget to enjoy the happiness in life and will keep on complaining and complaining.
If in your heart if you have enmity for anyone , will keep on complaining and complaining.
If you will be persistent in complaining and complaining, you need to be rebellion.
Don't be rebellious,be careful complainng nature doesn't becomes your obstacle and obstacle.
Openly you come in the open court,god has bestowed- bestowed upon you love.
In complaining - complaining you will forget the miracles- miracles of God.
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