Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Hymn No. 6169 | Date: 21-Feb-1996
जब बानी में निकले ऐसी बानी, फिर कुर्बानी क्या होती है
Jaba bānī mēṁ nikalē aisī bānī, phira kurbānī kyā hōtī hai

જીવન માર્ગ, સમજ (Life Approach, Understanding)

Hymn No. 6169 | Date: 21-Feb-1996

जब बानी में निकले ऐसी बानी, फिर कुर्बानी क्या होती है

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jaba bānī mēṁ nikalē aisī bānī, phira kurbānī kyā hōtī hai

જીવન માર્ગ, સમજ (Life Approach, Understanding)

1996-02-21 1996-02-21 https://www.kakabhajans.org/Bhajan/default.aspx?id=12158 जब बानी में निकले ऐसी बानी, फिर कुर्बानी क्या होती है जब बानी में निकले ऐसी बानी, फिर कुर्बानी क्या होती है,

जब बानी भुलाये ना खुद को, ना जग को, तो कुर्बानी कैसी होती है।

कुर्बानी ना शिकायत रखती है, शिकायत में ना कुर्बानी होती है,

वह भावों में तो चलती है, भावों से ही रुकती है, भावों से ना सबंध रखती है।

दुःख-दर्द से दूर रहती है, ना खुद दुःख-दर्द से नाता रखती है, यही सच्ची कुर्बानी होती है,

मकसद अपना ख्वाब में भी ना भूलती है, वह हकीकत के साथ हर वक्त रहती है।

उम्मीदों से रखती है रिश्ता अपना, फिर भी वह नाउम्मीद नही होती है,

ना वह रोके रुकती है, ना किसी बंधन से बँध जाती है, यही सच्ची कुर्बानी है।

प्रेम से रिश्ता रखती है, प्यार ही प्यार देती है, प्यार ही तो चाहती है, वही सच्ची कुर्बानी है,

कहाँ पहुँचेगी कहाँ रुकेगी, ना ध्यान उसका है, फिर भी मंजिल की ओर बढ़ती जाती है।
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जब बानी में निकले ऐसी बानी, फिर कुर्बानी क्या होती है,

जब बानी भुलाये ना खुद को, ना जग को, तो कुर्बानी कैसी होती है।

कुर्बानी ना शिकायत रखती है, शिकायत में ना कुर्बानी होती है,

वह भावों में तो चलती है, भावों से ही रुकती है, भावों से ना सबंध रखती है।

दुःख-दर्द से दूर रहती है, ना खुद दुःख-दर्द से नाता रखती है, यही सच्ची कुर्बानी होती है,

मकसद अपना ख्वाब में भी ना भूलती है, वह हकीकत के साथ हर वक्त रहती है।

उम्मीदों से रखती है रिश्ता अपना, फिर भी वह नाउम्मीद नही होती है,

ना वह रोके रुकती है, ना किसी बंधन से बँध जाती है, यही सच्ची कुर्बानी है।

प्रेम से रिश्ता रखती है, प्यार ही प्यार देती है, प्यार ही तो चाहती है, वही सच्ची कुर्बानी है,

कहाँ पहुँचेगी कहाँ रुकेगी, ना ध्यान उसका है, फिर भी मंजिल की ओर बढ़ती जाती है।




सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
Lyrics in English Increase Font Decrease Font

jaba bānī mēṁ nikalē aisī bānī, phira kurbānī kyā hōtī hai,

jaba bānī bhulāyē nā khuda kō, nā jaga kō, tō kurbānī kaisī hōtī hai।

kurbānī nā śikāyata rakhatī hai, śikāyata mēṁ nā kurbānī hōtī hai,

vaha bhāvōṁ mēṁ tō calatī hai, bhāvōṁ sē hī rukatī hai, bhāvōṁ sē nā sabaṁdha rakhatī hai।

duḥkha-darda sē dūra rahatī hai, nā khuda duḥkha-darda sē nātā rakhatī hai, yahī saccī kurbānī hōtī hai,

makasada apanā khvāba mēṁ bhī nā bhūlatī hai, vaha hakīkata kē sātha hara vakta rahatī hai।

ummīdōṁ sē rakhatī hai riśtā apanā, phira bhī vaha nāummīda nahī hōtī hai,

nā vaha rōkē rukatī hai, nā kisī baṁdhana sē bam̐dha jātī hai, yahī saccī kurbānī hai।

prēma sē riśtā rakhatī hai, pyāra hī pyāra dētī hai, pyāra hī tō cāhatī hai, vahī saccī kurbānī hai,

kahām̐ pahum̐cēgī kahām̐ rukēgī, nā dhyāna usakā hai, phira bhī maṁjila kī ōra baḍha़tī jātī hai।
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Hindi Bhajan no. 6169 by Satguru Devendra Ghia - Kaka
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