Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Hymn No. 6455 | Date: 07-Nov-1996
हर मंजिल के पीछे कोई और मंजिल तो होती है
Hara maṁjila kē pīchē kōī aura maṁjila tō hōtī hai

જીવન માર્ગ, સમજ (Life Approach, Understanding)

Hymn No. 6455 | Date: 07-Nov-1996

हर मंजिल के पीछे कोई और मंजिल तो होती है

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hara maṁjila kē pīchē kōī aura maṁjila tō hōtī hai

જીવન માર્ગ, સમજ (Life Approach, Understanding)

1996-11-07 1996-11-07 https://www.kakabhajans.org/Bhajan/default.aspx?id=12444 हर मंजिल के पीछे कोई और मंजिल तो होती है हर मंजिल के पीछे कोई और मंजिल तो होती है

वही और मंजिल के पीछे, इंत़जार की तीसरी मंजिल होती है

मंजिल मंजिल पर ना तू रुकना, और मंजिल पर पहुँचना है

एक मंजिल पर पहुँचे बिना, दूसरी मंजिल ढूँढ़ना ठीक नही है

हर मंजिल पर मुकाम रखना थोड़ा, अंतिम मंजिल पर पहुँचना है

मंजिल के बाद रहे ना बाकी कोई मंजिल, वही अंतिम मंजिल होती है

मंजिल पर चलते चलते थक ना जाना, अंतिम मंजिल पर पहुँचना है

हर मंजिल को अपनी मंजिल ना समझना, वह तो धोखा देती है

जब मंजिल पर पहुँचना है तुझे, तुझे ही चलना होगा, यह निश्चित है

जब मिल जाए मंजिल तुझे तेरी, जीवन में ना उसे कुछ पाना है
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हर मंजिल के पीछे कोई और मंजिल तो होती है

वही और मंजिल के पीछे, इंत़जार की तीसरी मंजिल होती है

मंजिल मंजिल पर ना तू रुकना, और मंजिल पर पहुँचना है

एक मंजिल पर पहुँचे बिना, दूसरी मंजिल ढूँढ़ना ठीक नही है

हर मंजिल पर मुकाम रखना थोड़ा, अंतिम मंजिल पर पहुँचना है

मंजिल के बाद रहे ना बाकी कोई मंजिल, वही अंतिम मंजिल होती है

मंजिल पर चलते चलते थक ना जाना, अंतिम मंजिल पर पहुँचना है

हर मंजिल को अपनी मंजिल ना समझना, वह तो धोखा देती है

जब मंजिल पर पहुँचना है तुझे, तुझे ही चलना होगा, यह निश्चित है

जब मिल जाए मंजिल तुझे तेरी, जीवन में ना उसे कुछ पाना है




सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
Lyrics in English Increase Font Decrease Font

hara maṁjila kē pīchē kōī aura maṁjila tō hōtī hai

vahī aura maṁjila kē pīchē, iṁta़jāra kī tīsarī maṁjila hōtī hai

maṁjila maṁjila para nā tū rukanā, aura maṁjila para pahum̐canā hai

ēka maṁjila para pahum̐cē binā, dūsarī maṁjila ḍhūm̐ḍha़nā ṭhīka nahī hai

hara maṁjila para mukāma rakhanā thōḍa़ā, aṁtima maṁjila para pahum̐canā hai

maṁjila kē bāda rahē nā bākī kōī maṁjila, vahī aṁtima maṁjila hōtī hai

maṁjila para calatē calatē thaka nā jānā, aṁtima maṁjila para pahum̐canā hai

hara maṁjila kō apanī maṁjila nā samajhanā, vaha tō dhōkhā dētī hai

jaba maṁjila para pahum̐canā hai tujhē, tujhē hī calanā hōgā, yaha niścita hai

jaba mila jāē maṁjila tujhē tērī, jīvana mēṁ nā usē kucha pānā hai
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Hindi Bhajan no. 6455 by Satguru Devendra Ghia - Kaka
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