Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Hymn No. 6721 | Date: 13-Apr-1997
मजबूरियों से भरी हुई है, कहानी, इसी का नाम तो है जिंदगानी।
Majabūriyōṁ sē bharī huī hai, kahānī, isī kā nāma tō hai jiṁdagānī।

જીવન માર્ગ, સમજ (Life Approach, Understanding)



Hymn No. 6721 | Date: 13-Apr-1997

मजबूरियों से भरी हुई है, कहानी, इसी का नाम तो है जिंदगानी।

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majabūriyōṁ sē bharī huī hai, kahānī, isī kā nāma tō hai jiṁdagānī।

જીવન માર્ગ, સમજ (Life Approach, Understanding)

1997-04-13 1997-04-13 https://www.kakabhajans.org/Bhajan/default.aspx?id=16708 मजबूरियों से भरी हुई है, कहानी, इसी का नाम तो है जिंदगानी। मजबूरियों से भरी हुई है, कहानी, इसी का नाम तो है जिंदगानी।

कभी जिंदादिली दिखाती, आखिर मजबूरियों के द्वार रही है खटखटाती,

पुराण पुरुष हो या आधुनिक मानव हो, मजबूरियों के बिना अधूरी है कहानी।

कई झुके, कई खत्म हुए लड़ते, सबको सता रही है, तो मजबूरी,

वजह है सब की अलग-अलग, फिर भी परिणाम एक वह है मजबूरी।

करना चाहो सब कुछ, करना सको कुछ भी, रुकवा देती है मजबूरी,

मजबूरियों को कम ना समझो, जीवन में सबसे बडी है वह बीमारी।

सबके दिल का कोई मर्म स्थल ढूँढ़ के, वह स्थान वहाँ जमा देती,

है ताकत सबसे बड़ी, जीवन में बिन ड़ोर वह बाँध देती है।
https://www.youtube.com/watch?v=x6e5vwXppM0
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मजबूरियों से भरी हुई है, कहानी, इसी का नाम तो है जिंदगानी।

कभी जिंदादिली दिखाती, आखिर मजबूरियों के द्वार रही है खटखटाती,

पुराण पुरुष हो या आधुनिक मानव हो, मजबूरियों के बिना अधूरी है कहानी।

कई झुके, कई खत्म हुए लड़ते, सबको सता रही है, तो मजबूरी,

वजह है सब की अलग-अलग, फिर भी परिणाम एक वह है मजबूरी।

करना चाहो सब कुछ, करना सको कुछ भी, रुकवा देती है मजबूरी,

मजबूरियों को कम ना समझो, जीवन में सबसे बडी है वह बीमारी।

सबके दिल का कोई मर्म स्थल ढूँढ़ के, वह स्थान वहाँ जमा देती,

है ताकत सबसे बड़ी, जीवन में बिन ड़ोर वह बाँध देती है।




सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
Lyrics in English Increase Font Decrease Font

majabūriyōṁ sē bharī huī hai, kahānī, isī kā nāma tō hai jiṁdagānī।

kabhī jiṁdādilī dikhātī, ākhira majabūriyōṁ kē dvāra rahī hai khaṭakhaṭātī,

purāṇa puruṣa hō yā ādhunika mānava hō, majabūriyōṁ kē binā adhūrī hai kahānī।

kaī jhukē, kaī khatma huē laḍa़tē, sabakō satā rahī hai, tō majabūrī,

vajaha hai saba kī alaga-alaga, phira bhī pariṇāma ēka vaha hai majabūrī।

karanā cāhō saba kucha, karanā sakō kucha bhī, rukavā dētī hai majabūrī,

majabūriyōṁ kō kama nā samajhō, jīvana mēṁ sabasē baḍī hai vaha bīmārī।

sabakē dila kā kōī marma sthala ḍhūm̐ḍha़ kē, vaha sthāna vahām̐ jamā dētī,

hai tākata sabasē baḍa़ī, jīvana mēṁ bina ḍa़ōra vaha bām̐dha dētī hai।
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Hindi Bhajan no. 6721 by Satguru Devendra Ghia - Kaka

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