Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Hymn No. 6733 | Date: 18-Apr-1997
मेरा दिल नाजुक तो है, मगर यह बात नाजुक तो नही है
Mērā dila nājuka tō hai, magara yaha bāta nājuka tō nahī hai

સ્વયં અનુભૂતિ, આત્મનિરીક્ષણ (Self Realization, Introspection)

Hymn No. 6733 | Date: 18-Apr-1997

मेरा दिल नाजुक तो है, मगर यह बात नाजुक तो नही है

  No Audio

mērā dila nājuka tō hai, magara yaha bāta nājuka tō nahī hai

સ્વયં અનુભૂતિ, આત્મનિરીક્ષણ (Self Realization, Introspection)

1997-04-18 1997-04-18 https://www.kakabhajans.org/Bhajan/default.aspx?id=16720 मेरा दिल नाजुक तो है, मगर यह बात नाजुक तो नही है मेरा दिल नाजुक तो है, मगर यह बात नाजुक तो नही है

यह बात नाजुक तो नहीं है, कहानी मेरी नाजुक तो नही।

मुसीबतों से भरी हुई है मेरी जिंदगानी, यह बात नाजुक तो नही

जकड़े हुए हैं पैर मेरे मुसीबतें से, यह बात नाजुक तो नही है।

लिखी जा रही है मेरी ही कहानी, मगर कलम तो मेरे हाथ नही

समझ ना सका मैं अन्य को, संबंधों के भाव को, यह बात नाजुक तो नही।

पहने हुआ हूँ निराशा के दामन को जीवन में, यह बात नाजुक तो नही

ना बैर में डूबा हुआ हूँ, प्रेम उभरता नही दिल में, यह बात नाजुक तो नही।

कैसे कहे, क्यों कहे, दिल चिंताओं से भरा रहे, यह बात नाजुक तो नही।

ना खेल बंद हुआ भाग्य का, ऊपर-नीचे रहा करता जीवन में, यह बात नाजुक तो नही।
View Original Increase Font Decrease Font


मेरा दिल नाजुक तो है, मगर यह बात नाजुक तो नही है

यह बात नाजुक तो नहीं है, कहानी मेरी नाजुक तो नही।

मुसीबतों से भरी हुई है मेरी जिंदगानी, यह बात नाजुक तो नही

जकड़े हुए हैं पैर मेरे मुसीबतें से, यह बात नाजुक तो नही है।

लिखी जा रही है मेरी ही कहानी, मगर कलम तो मेरे हाथ नही

समझ ना सका मैं अन्य को, संबंधों के भाव को, यह बात नाजुक तो नही।

पहने हुआ हूँ निराशा के दामन को जीवन में, यह बात नाजुक तो नही

ना बैर में डूबा हुआ हूँ, प्रेम उभरता नही दिल में, यह बात नाजुक तो नही।

कैसे कहे, क्यों कहे, दिल चिंताओं से भरा रहे, यह बात नाजुक तो नही।

ना खेल बंद हुआ भाग्य का, ऊपर-नीचे रहा करता जीवन में, यह बात नाजुक तो नही।




सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
Lyrics in English Increase Font Decrease Font

mērā dila nājuka tō hai, magara yaha bāta nājuka tō nahī hai

yaha bāta nājuka tō nahīṁ hai, kahānī mērī nājuka tō nahī।

musībatōṁ sē bharī huī hai mērī jiṁdagānī, yaha bāta nājuka tō nahī

jakaḍa़ē huē haiṁ paira mērē musībatēṁ sē, yaha bāta nājuka tō nahī hai।

likhī jā rahī hai mērī hī kahānī, magara kalama tō mērē hātha nahī

samajha nā sakā maiṁ anya kō, saṁbaṁdhōṁ kē bhāva kō, yaha bāta nājuka tō nahī।

pahanē huā hūm̐ nirāśā kē dāmana kō jīvana mēṁ, yaha bāta nājuka tō nahī

nā baira mēṁ ḍūbā huā hūm̐, prēma ubharatā nahī dila mēṁ, yaha bāta nājuka tō nahī।

kaisē kahē, kyōṁ kahē, dila ciṁtāōṁ sē bharā rahē, yaha bāta nājuka tō nahī।

nā khēla baṁda huā bhāgya kā, ūpara-nīcē rahā karatā jīvana mēṁ, yaha bāta nājuka tō nahī।
English Explanation Increase Font Decrease Font


In this bhajan Shri Devendra Ghia ji also known as Kakaji is indicating the fragility in life.

My heart is fragile, but is this thing fragile.

Is this thing fragile, the story of my life is it fragile.

My life is full of problems, is this thing fragile.

I am struck in troubles, is this thing fragile.

My story is being written, but the pen is not in my hand.

I could not make other understand, emotions of relation, is this thing not fragile.

I am clothed in despair in life, is this thing not fragile.

I am not immeresed in hatred, neither love rises in heart, is this thing not fragile.

How to say, what to say, is this thing is not fragile.

Thee game of luck never stopped, the life has been up and down, is this thing not fragile.
Scan Image

Hindi Bhajan no. 6733 by Satguru Devendra Ghia - Kaka
First...673067316732...Last