Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Hymn No. 8879
जैसा सोच रहे आप मुझे, मैं वैसा नही हूँ।
Jaisā sōca rahē āpa mujhē, maiṁ vaisā nahī hūm̐।

જીવન માર્ગ, સમજ (Life Approach, Understanding)

Hymn No. 8879

जैसा सोच रहे आप मुझे, मैं वैसा नही हूँ।

  No Audio

jaisā sōca rahē āpa mujhē, maiṁ vaisā nahī hūm̐।

જીવન માર્ગ, સમજ (Life Approach, Understanding)

1900-01-01 1900-01-01 https://www.kakabhajans.org/Bhajan/default.aspx?id=18366 जैसा सोच रहे आप मुझे, मैं वैसा नही हूँ। जैसा सोच रहे आप मुझे, मैं वैसा नही हूँ।

आपकी नज़रों की कठपुतली हूँ ना विचारों की कठपुतली हूँ,

दिल और नज़रों को काबू में रखता हूँ, ना उसे भागने देता हूँ।

चल रहा हूँ मेरे पैरों के बल पर प्रभु बस इतनी माँग करता हूँ,

मेरे पैरों में दे ताकत इतनी, मेरे पैरों से मैं चल सकूँ।

कभी गरम कभी नरम, हर परिवेश में मैं होता हूँ

ना मैं गरम हूँ, ना मैं नरम हूँ, बुद्धि ना किसी के हवाले करता हूँ

सब की बात सुनते भी खुद की बुद्धि से चलता रहता हूँ।

ना था शुरू में ऐसा, संजोगों ने वैसा बना दिया,

ना मैं पापी हूँ ना पुण्यशाली हूँ, बीच की राह पर चलने वाला हूँ।

आया मुक्ति पाने के लिये, ना मुक्त रह सका ना मुक्ति पा सका हूँ,

ना मैं सच्चा हूँ, ना झूठा हूँ, दोनों की बीच की राह पर चलने वाला हूँ।
View Original Increase Font Decrease Font


जैसा सोच रहे आप मुझे, मैं वैसा नही हूँ।

आपकी नज़रों की कठपुतली हूँ ना विचारों की कठपुतली हूँ,

दिल और नज़रों को काबू में रखता हूँ, ना उसे भागने देता हूँ।

चल रहा हूँ मेरे पैरों के बल पर प्रभु बस इतनी माँग करता हूँ,

मेरे पैरों में दे ताकत इतनी, मेरे पैरों से मैं चल सकूँ।

कभी गरम कभी नरम, हर परिवेश में मैं होता हूँ

ना मैं गरम हूँ, ना मैं नरम हूँ, बुद्धि ना किसी के हवाले करता हूँ

सब की बात सुनते भी खुद की बुद्धि से चलता रहता हूँ।

ना था शुरू में ऐसा, संजोगों ने वैसा बना दिया,

ना मैं पापी हूँ ना पुण्यशाली हूँ, बीच की राह पर चलने वाला हूँ।

आया मुक्ति पाने के लिये, ना मुक्त रह सका ना मुक्ति पा सका हूँ,

ना मैं सच्चा हूँ, ना झूठा हूँ, दोनों की बीच की राह पर चलने वाला हूँ।




सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
Lyrics in English Increase Font Decrease Font

jaisā sōca rahē āpa mujhē, maiṁ vaisā nahī hūm̐।

āpakī naja़rōṁ kī kaṭhaputalī hūm̐ nā vicārōṁ kī kaṭhaputalī hūm̐,

dila aura naja़rōṁ kō kābū mēṁ rakhatā hūm̐, nā usē bhāganē dētā hūm̐।

cala rahā hūm̐ mērē pairōṁ kē bala para prabhu basa itanī mām̐ga karatā hūm̐,

mērē pairōṁ mēṁ dē tākata itanī, mērē pairōṁ sē maiṁ cala sakūm̐।

kabhī garama kabhī narama, hara parivēśa mēṁ maiṁ hōtā hūm̐

nā maiṁ garama hūm̐, nā maiṁ narama hūm̐, buddhi nā kisī kē havālē karatā hūm̐

saba kī bāta sunatē bhī khuda kī buddhi sē calatā rahatā hūm̐।

nā thā śurū mēṁ aisā, saṁjōgōṁ nē vaisā banā diyā,

nā maiṁ pāpī hūm̐ nā puṇyaśālī hūm̐, bīca kī rāha para calanē vālā hūm̐।

āyā mukti pānē kē liyē, nā mukta raha sakā nā mukti pā sakā hūm̐,

nā maiṁ saccā hūm̐, nā jhūṭhā hūm̐, dōnōṁ kī bīca kī rāha para calanē vālā hūm̐।
Scan Image

Hindi Bhajan no. 8879 by Satguru Devendra Ghia - Kaka
First...887588768877...Last