Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Hymn No. 8905
पूछा मैंने अपने ख्वाब को कहाँ से आया क्या लाया?
Pūchā maiṁnē apanē khvāba kō kahām̐ sē āyā kyā lāyā?

સ્વયં અનુભૂતિ, આત્મનિરીક્ષણ (Self Realization, Introspection)

Hymn No. 8905

पूछा मैंने अपने ख्वाब को कहाँ से आया क्या लाया?

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pūchā maiṁnē apanē khvāba kō kahām̐ sē āyā kyā lāyā?

સ્વયં અનુભૂતિ, આત્મનિરીક્ષણ (Self Realization, Introspection)

1900-01-01 1900-01-01 https://www.kakabhajans.org/Bhajan/default.aspx?id=18392 पूछा मैंने अपने ख्वाब को कहाँ से आया क्या लाया? पूछा मैंने अपने ख्वाब को कहाँ से आया क्या लाया?

क्यों आया तू मेरे पास में?

तेरी शान की क्या मैं दाद दूँ, हकीकत में ना था में जो

ख्वाबों में सब कुछ मुझे बना दिया।

मैं गम भी भूल गया, सारे जहाँ को भी भूल गया

तुझे मैं योगी कहूँ के क्या कहूँ, समझ में नहीं आता।

मेरी सल्तनत की सरहदें बना दी इतनी बुलंद,

मेरी सरहद मेरी नज़र में नहीं आती।

ना किसी चीज का कैफी था, फिर भी तूने मुझे ख्वाब के कैफ पर चढा दिया।

मैं जानता ना था कि मैं कुछ हूँ, फिर भी तूने मुझे मेरी जहाँ का सुलतान बना दिया।
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पूछा मैंने अपने ख्वाब को कहाँ से आया क्या लाया?

क्यों आया तू मेरे पास में?

तेरी शान की क्या मैं दाद दूँ, हकीकत में ना था में जो

ख्वाबों में सब कुछ मुझे बना दिया।

मैं गम भी भूल गया, सारे जहाँ को भी भूल गया

तुझे मैं योगी कहूँ के क्या कहूँ, समझ में नहीं आता।

मेरी सल्तनत की सरहदें बना दी इतनी बुलंद,

मेरी सरहद मेरी नज़र में नहीं आती।

ना किसी चीज का कैफी था, फिर भी तूने मुझे ख्वाब के कैफ पर चढा दिया।

मैं जानता ना था कि मैं कुछ हूँ, फिर भी तूने मुझे मेरी जहाँ का सुलतान बना दिया।




सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
Lyrics in English Increase Font Decrease Font

pūchā maiṁnē apanē khvāba kō kahām̐ sē āyā kyā lāyā?

kyōṁ āyā tū mērē pāsa mēṁ?

tērī śāna kī kyā maiṁ dāda dūm̐, hakīkata mēṁ nā thā mēṁ jō

khvābōṁ mēṁ saba kucha mujhē banā diyā।

maiṁ gama bhī bhūla gayā, sārē jahām̐ kō bhī bhūla gayā

tujhē maiṁ yōgī kahūm̐ kē kyā kahūm̐, samajha mēṁ nahīṁ ātā।

mērī saltanata kī sarahadēṁ banā dī itanī bulaṁda,

mērī sarahada mērī naja़ra mēṁ nahīṁ ātī।

nā kisī cīja kā kaiphī thā, phira bhī tūnē mujhē khvāba kē kaipha para caḍhā diyā।

maiṁ jānatā nā thā ki maiṁ kucha hūm̐, phira bhī tūnē mujhē mērī jahām̐ kā sulatāna banā diyā।
English Explanation Increase Font Decrease Font


In this bhajan Kakaji, shri Devendra Ghia is talking about greatness and kindness of his sadguru.

I asked my dream from where have you come and what have you brought ?

Why did you come to me ?

How do I admire your magnificence, as I am not in reality.

You made me everything in my dreams.

I forgot sorrow, forgot the whole world.

Whether I should call you a yogi or something else, I do not understand.

You elevated boundaries of my kingdom so high and long.

I can't see my boundaries.

I was never happy for anything, but you made me hooked to happiness of my dream.

I did not know that I am something, yet you made me the Sultan of my world
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Hindi Bhajan no. 8905 by Satguru Devendra Ghia - Kaka
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