Hymn No. 9278
सोचते-सोचते समय बिताया समय निकल गया हाथ से
sōcatē-sōcatē samaya bitāyā samaya nikala gayā hātha sē
1900-01-01
1900-01-01
1900-01-01
https://www.kakabhajans.org/Bhajan/default.aspx?id=18765
सोचते-सोचते समय बिताया समय निकल गया हाथ से
सोचते-सोचते समय बिताया समय निकल गया हाथ से,
दीवार ना बाँधी कर्मों के आगे, बह रही है धारा कर्मों की।
कर्मों की धार को, रोक सकेगा बाँध कर्मों का, कर कर्म अब सोच के,
होता है कर्म तो समय की धारा में, देख समय निकल न जाए हाथ से।
समय बहाए सुख-दुःख की धारा, रख कर्मों की ड़ोर तेरे हाथों में
करना है कर्मों को समय पर, गँवाओ ना समय जग में व्यर्थ बातों में
बीता समय न आयेगा वापस, किया कर्म भुगतना पडेगा,
बात ये समझ ले तू, तेरी सारी समझ को जोड़ के।
Satguru Shri Devendra Ghia (Kaka)
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सोचते-सोचते समय बिताया समय निकल गया हाथ से,
दीवार ना बाँधी कर्मों के आगे, बह रही है धारा कर्मों की।
कर्मों की धार को, रोक सकेगा बाँध कर्मों का, कर कर्म अब सोच के,
होता है कर्म तो समय की धारा में, देख समय निकल न जाए हाथ से।
समय बहाए सुख-दुःख की धारा, रख कर्मों की ड़ोर तेरे हाथों में
करना है कर्मों को समय पर, गँवाओ ना समय जग में व्यर्थ बातों में
बीता समय न आयेगा वापस, किया कर्म भुगतना पडेगा,
बात ये समझ ले तू, तेरी सारी समझ को जोड़ के।
सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
sōcatē-sōcatē samaya bitāyā samaya nikala gayā hātha sē,
dīvāra nā bām̐dhī karmōṁ kē āgē, baha rahī hai dhārā karmōṁ kī।
karmōṁ kī dhāra kō, rōka sakēgā bām̐dha karmōṁ kā, kara karma aba sōca kē,
hōtā hai karma tō samaya kī dhārā mēṁ, dēkha samaya nikala na jāē hātha sē।
samaya bahāē sukha-duḥkha kī dhārā, rakha karmōṁ kī ḍa़ōra tērē hāthōṁ mēṁ
karanā hai karmōṁ kō samaya para, gam̐vāō nā samaya jaga mēṁ vyartha bātōṁ mēṁ
bītā samaya na āyēgā vāpasa, kiyā karma bhugatanā paḍēgā,
bāta yē samajha lē tū, tērī sārī samajha kō jōḍa़ kē।
English Explanation |
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Sadguru Shri Devendra Ghiaji has written in this Hindi Bhajan, in which he shares the fact that our deeds have to be done in time and we go through the consequences of our deeds done.
Spent time thinking and the time has gone out of hands.
Did not build a wall in front of the deeds, the stream of actions is flowing.
The torrent of Karma shall only stop, when deeds are bounded, now think and do each and every karma.
Karma happens in the stream of time, see that the time does not run out of the hands.
Time flows with the stream of happiness and sorrow, keep the rope of deeds in your hands. Here Kakaji means to say to keep control of the deeds as happiness and sorrow are the consequences of our deeds.
The deeds have to be done in the world on time, so do not waste time in vain in the world.
The passed time shall not return back, you have to suffer the consequences of the deeds done.
Kakaji concludes
Understand this whole heartedly by adding all your knowledge and understanding.
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