Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Bhaav Samadhi Vichaar Samadhi - Kaka Bhajans
Hymn No. 9344
तू है सर्वत्र, तुझ तक पहुँचने की ना है पहुँच हमारी
Tū hai sarvatra, tujha taka pahum̐canē kī nā hai pahum̐ca hamārī
Hymn No. 9344

तू है सर्वत्र, तुझ तक पहुँचने की ना है पहुँच हमारी

  No Audio

tū hai sarvatra, tujha taka pahum̐canē kī nā hai pahum̐ca hamārī

1900-01-01 1900-01-01 https://www.kakabhajans.org/Bhajan/default.aspx?id=18831 तू है सर्वत्र, तुझ तक पहुँचने की ना है पहुँच हमारी तू है सर्वत्र, तुझ तक पहुँचने की ना है पहुँच हमारी,

खेल खेले तू ऐसे, समझने की ना पहुँच है हमारी।

फिरायें नज़र जहाँ -जहाँ, माया तेरी है दिखाई देती,

है उत्कंठा दिल में तुझे मिलने की, पूरी नही वह होती।

डूबे हैं संसार में ऐसे, कोशिश में कामयाबी नही मिलती,

दुःख-दर्द की कहानी जीवन में, रोके नही रूकती।

हर समय है शोभा जीवन की, बात समझ में वह नही आती,

है कुदरत के खिलौने, खेलने को मजबूर है बनाती

सुखदुःख है हवा जीवन की, झोंक रहती है बदलती

कहाँ कहाँ पर ढूँढें प्रभु तुझे, नज़र ढूँढ नही पाती।
View Original Increase Font Decrease Font


तू है सर्वत्र, तुझ तक पहुँचने की ना है पहुँच हमारी,

खेल खेले तू ऐसे, समझने की ना पहुँच है हमारी।

फिरायें नज़र जहाँ -जहाँ, माया तेरी है दिखाई देती,

है उत्कंठा दिल में तुझे मिलने की, पूरी नही वह होती।

डूबे हैं संसार में ऐसे, कोशिश में कामयाबी नही मिलती,

दुःख-दर्द की कहानी जीवन में, रोके नही रूकती।

हर समय है शोभा जीवन की, बात समझ में वह नही आती,

है कुदरत के खिलौने, खेलने को मजबूर है बनाती

सुखदुःख है हवा जीवन की, झोंक रहती है बदलती

कहाँ कहाँ पर ढूँढें प्रभु तुझे, नज़र ढूँढ नही पाती।




सतगुरू देवेंद्र घिया (काका)
Lyrics in English Increase Font Decrease Font

tū hai sarvatra, tujha taka pahum̐canē kī nā hai pahum̐ca hamārī,

khēla khēlē tū aisē, samajhanē kī nā pahum̐ca hai hamārī।

phirāyēṁ naja़ra jahām̐ -jahām̐, māyā tērī hai dikhāī dētī,

hai utkaṁṭhā dila mēṁ tujhē milanē kī, pūrī nahī vaha hōtī।

ḍūbē haiṁ saṁsāra mēṁ aisē, kōśiśa mēṁ kāmayābī nahī milatī,

duḥkha-darda kī kahānī jīvana mēṁ, rōkē nahī rūkatī।

hara samaya hai śōbhā jīvana kī, bāta samajha mēṁ vaha nahī ātī,

hai kudarata kē khilaunē, khēlanē kō majabūra hai banātī

sukhaduḥkha hai havā jīvana kī, jhōṁka rahatī hai badalatī

kahām̐ kahām̐ para ḍhūm̐ḍhēṁ prabhu tujhē, naja़ra ḍhūm̐ḍha nahī pātī।
English Explanation Increase Font Decrease Font


Sadguru Devendra Ghiaji is talking about the omnipresent Divine, but though it being available everywhere we are unable to meet him.

You are everywhere, but we do not have access to reach up to you.

You play such games which we are unable to understand.

Wherever I gaze my eyes, I can see your created illusion everywhere.

I have a yearning to meet you, in the heart but this wish is not fulfilled.

As we are immersed in the world so, that we do not get success in our try.

The story of sorrow and pain in life is not stopped.

It is the beauty of life, but this matter is not understood.

These are the nature's toys, which we are enforced to play.

Happiness and sorrow is the wind of life, the gust of which keeps on changing.

In the end, Kakaji concludes by stating his limitations.

Where shall we search you God, the eyes are not capable of finding you.
Scan Image

Hindi Bhajan no. 9344 by Satguru Devendra Ghia - Kaka
First...934093419342...Last